उत्तराखंड का उच्च हिमालयी क्षेत्र अपनी दुर्लभ वन्यजीव जंतु सहित औषधीय पौध के लिए विश्व विख्यात है. प्रदेश के बुग्यालों में आज भी ऐसी विशेष प्रजातियों के दुर्लभ औषधीय पौधे हैं, जिनके बारे में हमने सुना तो है, लेकिन उनकी पूरी भौगोलिक सहित सरंचनाओं की जानकारी मिलना बहुत मुश्किल है. वहीं, अब उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (Uttarakhand Space Application Centre)ने उच्च हिमालय के बुग्यालों में पाई जाने वाली इन दुर्लभ प्रजातियों पर शोध व अध्ययन कर इनका एक डाटा बैंक तैयार किया है.

 

इस डाटा बैंक को एक किताब (Survey and Mapping of Medicinal and Aromatic Plants form Alpine Region of Uttarakhand) में तैयार किया है. इसके साथ ही UK-AIS (Uttarakhnad alpine information system) के नाम से वेबसाइट तैयार की गई है. इस डाटा बैंक से प्रदेश सरकार को मदद मिलेगी. साथ ही उत्तराखंड हर्बल प्रदेश बनाने की कवायद में भी यह कारगर साबित होगा

उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र के निदेशक प्रो. एमपीएस बिष्ट ने कहा प्रदेश के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाई जाने वाले दुर्लभ औषधीय पौधों के विशेषताओं पर अध्ययन हुए हैं, लेकिन अभी तक इन दुर्लभ औषधीय प्रजातियों के उत्पादन के विशेष स्थान सहित इनके घनत्व और सपूर्ण भौगोलिक परिस्थितियों की जानकारी नहीं थी.

इसके लिए U-SAC की टीम ने उनके नेतृत्व में डॉ. गजेंद्र और डॉ. शशांक सहित शोध छात्रों ने उच्च हिमालयी क्षेत्रों के करीब 75 बुग्यालों में 70 दुर्लभ औषधीय पौध की प्रजातियों पर अध्ययन किया. इसमें मुख्यतः प्रजातियों में एक पेड़, 6 प्रजातियां सर्बस, 1 क्लाइंबर और 1 पैरासाइट सहित 65 छोटे-छोटी घास पर अध्ययन किया गया है.

प्रो बिष्ट ने बताया प्रदेश के उच्च हिमालयी क्षेत्रों के बुग्यालों में अध्ययन के अनुसार करीब 1,875 वर्ग किमी में यह औषधीय प्रजातियां फैली हैं. जिनमें आतिश, विश (मीठा), हाथजड़ी, छिपी, रिधि, कीड़ाजड़ी, लालजड़ी आदि शामिल हैं. करीब 3 से 4 वर्ष के अध्ययन के बाद यह शोध को डाटा बैंक के रूप में तैयार किया गया है.

इस डाटा बैंक में हर प्रजाति के घनत्व सहित उसकी भौगोलिक परिस्थिति और उनके उगने के स्थान को चिन्हित किया गया है. इससे अब शोधार्थियों भटकना नहीं पड़ेगा. बल्कि डाटा बैंक से हर प्रजाति की जानकारी सरलता से मिल जाएगी. साथ ही यह प्रदेश सरकार के भी बहुत उपयोगी साबित होगा. जिससे कि इन दुर्लभ औषधीय पौध प्रजातियों के संरक्षण और संवर्धन भी हो सके.

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