उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने भले ही प्रचंड बहुमत से जीत दर्ज की, लेकिन बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मदन चुनाव जीतने के बाद भी उत्साहित नजर नहीं आ रहे हैं. सियासी गलियारों में भी रोज चर्चा हो रही है कि मदन कौशिक प्रदेश अध्यक्ष रहेंगे या नहीं? आखिर ऐसा क्या हुआ है कि मदन कौशिक को प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए भी गढ़वाल और कुमाऊं में तवज्जो नहीं मिल रही है. अब एक बार फिर से खबर आ रही है कि बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष का चेहरा बदल सकती है. इसके लिए गढ़वाल से किसी ब्राह्मण नेता की तलाशी की जा रही है.

हालांकि, बीते दिनों देहरादून आए दुष्यंत गौतम इतना जरूर कह गए थे कि संगठन में फिलहाल कोई बदलाव नहीं हो रहा है. चलिए आज हम आपको बताते हैं कि कैसे बीते दिनों हुए विधानसभा चुनाव और राज्य में सरकार बनाने के बाद भी मदन कौशिक (Uttarakhand BJP State President Madan Kaushik) को वो वेटेज नहीं मिल रहा है, जो उन्हें मिलना चाहिए था.

प्रदेश के अनुभवी नेताओं में से एक हैं मदन कौशिकः उत्तराखंड में बीजेपी नेताओं में सबसे अनुभवी नेताओं का अगर नाम आता है तो मदन कौशिक उनमें से एक हैं. साल 2002 में पहली बार हरिद्वार सीट से जीतकर विधानसभा पहुंचे. मदन कौशिक के अनुभव को देखते हुए बीसी खंडूड़ी से लेकर रमेश पोखरियाल निशंक और त्रिवेंद्र सरकार में भी उनको कैबिनेट का दर्जा दिया गया. पांच बार विधानसभा चुनाव जीतने के बाद फिलहाल वह प्रदेश अध्यक्ष हैं, लेकिन पार्टी के अंदर का एक धड़ा उन्हें इस पद पर अब पसंद नहीं कर रहा है. उसकी वजह भी हम आपको बताएंगे.

सबसे पहले आपको बताते हैं कि मदन कौशिक कब-कब चुनाव जीते और अब तक का उनका राजनीतिक सफर कैसा रहा? मदन कौशिक आरएसएस के स्वयंसेवक (Madan Kaushik RSS volunteer) रह चुके हैं. छात्र राजनीति से लेकर प्रदेश अध्यक्ष तक का सफर उन्होंने तय किया है. साल 2000 में उन्हें हरिद्वार से बीजेपी का अध्यक्ष बनाया गया. इसके बाद 2002 में विधानसभा चुनाव जीते.

वहीं, मदन कौशिक ने साल 2007, 2012 और 2017 में विधानसभा चुनाव जीतकर सरकार में महत्वपूर्ण मंत्रालयों का कार्यभार संभाला. इतना ही नहीं त्रिवेंद्र सरकार में तो उन्हें नंबर दो का नेता कहा जाता था. उत्तराखंड के बारे में समझ रखने वाले मदन कौशिक को त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार (Trivendra Singh Rawat) में सरकार का प्रवक्ता भी बनाया गया.

विधानसभा चुनाव में मतदान के बाद ही खुलने लगा मदन कौशिक के खिलाफ मोर्चाः मदन कौशिक को विधानसभा चुनावों से पहले प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई, लेकिन उन्हें यह नहीं मालूम था कि प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद चुनावों में उनके ऊपर ऐसे आरोप लगेंगे. आरोप भी ऐसे जिसके बाद अब संगठन उन आरोपों की जांच कर रहा है. चर्चा यही है कि अपनों ने ही जो उनके ऊपर आरोप लगाए थे, उसके चलते ही पार्टी अब इस बात पर विचार कर रही है कि बीजेपी में किसी नए प्रदेश अध्यक्ष को लाया जाए.

मदन कौशिक के खिलाफ माहौल तब बना जब विधानसभा चुनाव के नतीजे भी नहीं आए थे. लक्सर विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे संजय गुप्ता ने जैसे ही मतदान हुआ, अपनी हार स्वीकार कर ली. उन्होंने सीधे प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक का नाम लेते हुए उनके ऊपर कारवाई करने और भीतरघात का आरोप (Sanjay Gupta serious allegations on Madan Kaushik) मढ़ दिया. संजय गुप्ता ने मदन कौशिक की इतनी मुखालफत की कि उनके आरोपों के बाद अंदर खाने के कई विधायकों ने मदन कौशिक के खिलाफ मोर्चा खोल दिया.

रिजल्ट आने से पहले जो विधायक अपनी हार स्वीकार कर चुके थे, नतीजा भी वैसा ही रहा. संजय गुप्ता से लेकर हरिद्वार ग्रामीण सीट से विधायक रहे स्वामी यतीश्वरानंद भी अपनी विधानसभा सीट नहीं बचा पाए. इतना ही नहीं जो सीट हरिद्वार जनपद से साल 2017 के चुनावों में बीजेपी ने जीती थी, उनमें से कई विधानसभा सीटों पर बीजेपी को हाथ धोना पड़ा. आरोप यह लगा कि पार्टी के ही बड़े नेताओं ने प्रत्याशियों को हराने का काम किया है.

अपने ही जिले के विधायकों के बयानों से मदन के खिलाफ हुआ माहौलः संजय गुप्ता ने उस समय यह आरोप लगाया था कि शहजाद, मदन कौशिक के बेहद करीबी हैं और चुनावों में उन्होंने अपने आदमी भेज करके मुझे यानी संजय गुप्ता को हराने का काम किया है. संजय गुप्ता ने तो मदन कौशिक पर यह आरोप तक लगा दिए थे कि प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक की संपत्ति की भी जांच होनी चाहिए.

इतना ही नहीं स्वामी यतीश्वरानंद (Swami Yatishwaranand) ने भी चुनाव प्रचार के दौरान ही आरोप लगाया था कि प्रदेश अध्यक्ष के पारिवारिक सदस्य नरेश शर्मा को जानबूझकर आम आदमी पार्टी में शामिल किया गया है. वोट काटने के लिए उन्हें हरिद्वार ग्रामीण से चुनाव लड़वाया गया. इस सीट पर भी बीजेपी अपनी जीत दर्ज नहीं करवा पाई. इसके साथ ही कुमाऊं और गढ़वाल के तमाम नेताओं ने आरोप लगाया कि प्रदेश अध्यक्ष अपनी ही सीट पर विधानसभा चुनावों में अटक कर रह गए. इसका खामियाजा पार्टी को कई सीटों पर भुगतना पड़ा.

ऐसे में अब संगठन इस बात पर भी विचार कर रहा है कि साल 2024 में होने वाले चुनावों में अगर हरिद्वार के यही हालात रहे तो कहीं ऐसा न हो कि जिस सीट पर अभी बीजेपी के सांसद रमेश पोखरियाल निशंक हैं, उस सीट से भी बीजेपी को हाथ ना धोना पड़े. ऐसे में संगठन आने वाले समय में गढ़वाल में बदलाव करने पर विचार कर रहा है.

पार्टी बारीकी से देख रही अध्यक्ष की कार्यशैलीः उत्तराखंड में राजनीति और यहां की भौगोलिक स्थिति को अच्छी तरह से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत कहते हैं कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि मौजूदा समय मदन कौशिक के लिए सही नहीं है. वह प्रदेश अध्यक्ष भले ही हैं, लेकिन उन्हें उस तरह से तवज्जो नहीं दी जा रही है. इसका साफ कारण यही है कि विधानसभा चुनावों में जिस तरह से हरिद्वार में बीजेपी ने प्रदर्शन किया है, वह एक प्रदेश अध्यक्ष और इतने वरिष्ठ नेता से पार्टी उम्मीद नहीं कर रही थी.

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लिहाजा, ऐसे में हो सकता है कि पार्टी पूर्व विधायकों के आरोप और परिणामों के बाद प्रदेश अध्यक्ष में बदलाव करें. बीजेपी को बदलाव इसलिए भी करना होगा, क्योंकि कांग्रेस में जिस तरह से कुमाऊं को तवज्जो मिली है, बीजेपी गढ़वाल से प्रदेश अध्यक्ष बनाकर गढ़वाल को साधने की कोशिश करेगी. ऐसे में हो सकता है कि इसमें बहुत जल्द फैसला ले लिया जाए.

गढ़वाल से ही कोई ब्राह्मण होगा अध्यक्षः जय सिंह रावत यह भी मानते हैं कि उत्तराखंड में जिस तरह से पलायन हुआ है और लोग पहाड़ से मैदान में आए हैं, खासकर देहरादून, हरिद्वार, उधमसिंह नगर और ऋषिकेश इन जगहों पर लोगों ने रहना शुरू किया है, ऐसे में पार्टी इन सभी बातों पर विचार करके किसी गढ़वाल के ही व्यक्ति को अध्यक्ष बनाएगी. यह भी हो सकता है कि जो तीन सीटें मंत्रियों की खाली हैं, उनमें से एक मदन कौशिक को आने वाले समय में दे दी

लेकिन यह तभी होगा जब संजय गुप्ता जैसे विधायकों ने जो आरोप लगाए हैं, उनमें इंटरनल पार्टी जो सभी तथ्य देख रही है, उसमें मदन कौशिक पाक साफ पाए जाते हैं. क्योंकि, अगर मदन कौशिक को मौजूदा समय में कैबिनेट पद मिलता है तो इसमें कोई दो राय नहीं है कि संजय गुप्ता और स्वामी यतीश्वरानंद हार कर भी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के हमेशा साथ रहते हैं. हरिद्वार शिवालिक नगर सीट से तीन बार के विधायक आदेश चौहान, प्रदीप बत्रा जैसे विधायक भी इसका अंदर खाने विरोध करेंगे. ऐसे में पार्टी इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए आगे कैबिनेट मंत्री पद को लेकर के कोई फैसला लेगी.

किस्मत अच्छी हुई तो ही मिलेगा हरिद्वार में मदन कौशिक को मंत्रालयः राजनीतिक जानकार भागीरथ शर्मा भी मानते हैं कि मदन कौशिक की लोकप्रियता में कमी आई है. इसका उदाहरण यह भी है कि वह भले ही अपनी विधानसभा सीट जीत गए हों, लेकिन उस बड़े अंतर से नहीं जीते, जैसे वो पहले जीतते आ रहे हैं. ऐसे में भीतरघात के आरोप और अपने ही जिले के विधायक जिस तरह से उनके खिलाफ हुए हैं उससे पार्टी के बड़े नेताओं को भी अच्छा संदेश नहीं गया है.

ऐसे में अगर उन्हें कैबिनेट से दूर रखा गया है. फिलहाल, अब प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने की चर्चाएं भी बाहर आ रही हैं तो यह निराधार नहीं हो सकती. इसके पीछे कोई बड़ी वजह ही होगी. इतना जरूर है कि फिलहाल जिस तरह से एक प्रदेश अध्यक्ष को बीजेपी में देखा जाता है, पार्टी का एक बड़ा धड़ा, उन्हें पसंद नहीं कर रहा है.

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