एस-400 प्रणाली का पहला स्क्वाड्रन दिसंबर 2021 में भारत आया था और उसे पाकिस्तान और चीन दोनों में से किसी भी देश के हवाई हमले को विफल करने के लिए पंजाब सीमा पर तैनात किया गया है. भारत ने अक्टूबर 2018 में हस्ताक्षरित 5 अरब डॉलर के सौदे के माध्यम से रूस से पांच एस-400 सिस्टम खरीदे हैं.
एस-400 प्रणाली की सभी पांच इकाइयां के 2022 तक चालू होने की उम्मीद है. एस-400 प्रणाली चीनी या पाकिस्तानी लड़ाकों के खतरे को ट्रैक करने, उलझाने और उसका सामना करने में सक्षम है. यह प्रणाली कई स्तरों पर कई लक्ष्यों को ट्रैक कर सकती है और उन्हें एक साथ बेअसर कर सकती है.
भारत ने जुलाई 2020 में चीन के साथ अपने टकराव के बाद सैन्य बुनियादी ढांचे को अपग्रेड करने का फैसला किया था. चीन और पाकिस्तान की तरफ से युद्ध के खतरे की वजह से भारत को बड़े पैमाने पर हथियार खरीदने के सौदे के लिए प्रेरित किया और रूस अभी भी भारत के सबसे बड़े हथियार आपूर्तिकर्ताओं में से एक है. यूक्रेन के साथ रूस के युद्ध के बाद महत्वपूर्ण हथियार प्रणाली की डिलीवरी में देरी की आशंका थी. हालांकि, एस-400 प्रणाली के दूसरे स्क्वाड्रन की डिलीवरी के साथ, भारत को अन्य सैन्य क्षमताएं मिलने की उम्मीद है.
इस महीने की शुरुआत में, रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने भारत का दौरा किया था और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर से मुलाकात की थी और द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा करते हुए यूक्रेन में चल रहे संकट के बारे में उन्हें अवगत कराया था. लावरोव और जयशंकर ने रूस के कच्चे तेल की पेशकश, रुपया-रूबल भुगतान, चल रहे हथियारों के सौदे, यूक्रेन संकट और अफगानिस्तान और ईरान की स्थिति पर चर्चा की थी.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक भारत पर अमेरिका का भी काफी दबाव है. अमेरिका चाहता है कि भारत रूस से हथियार न खरीदे. लेकिन भारत ने अपनी सामरिक जरूरत के हिसाब से फैसला किया है. भारत ने अमेरिका को साफ कर दिया है, कि वह अपने हित में जो भी फैसले हैं, ले रहा है. इसे किसी दूसरे देश के जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए.