चरक संहिता में माना गया है कि शुद्ध देसी घी स्मृति, मेधा, उर्जा, बलवीर्य बढ़ाता है तथा कफ और वसा वर्धक होता है. साथ ही यह वात,पित्त, बुखार और शरीर के विषैले पदार्थों का नाश करता है. इसलिए आयुर्वेद में शुद्ध घी को औषधि (रसायन) माना जाता है. आयुर्वेद में सिर्फ रसायन के रूप में ही नही बल्कि देसी घी के बाहरी उपयोग को भी कई प्रकार के उपचारों में शामिल किया जाता है.

आयुर्वेद में औषधि है घी

मुंबई की आयुर्वेदाचार्य डॉ मनीषा काले बताती है कि आयुर्वेद में माना जाता है कि घी एक ऐसी औषधि है जिससे वात और पित्त शांत होते हैं तथा कफ संतुलित होता है. इसलिए इसे सर्व दोषों के निवारण के लिए आदर्श माना जाता है. इसे सिर्फ खाने वाली औषधि के रूप में ही नही बल्कि इसके बाह्य उपयोग को भी आयुर्वेद में पंचकर्म सहित विभिन्न अपचारों में शामिल किया जाता है.

डॉ मनीषा बताती हैं कि आयुर्वेद में सुबह खाली पेट शुद्ध देसी गाय के घी का सेवन करने की सलाह दी जाती है. क्योंकि इससे शरीर की लगभग सभी समस्याओं को दूर करने, पाचन तंत्र, तंत्रिका तंत्र तथा हड्डी तंत्र को स्वस्थ रखने तथा बालों व त्वचा का सौंदर्य बनाए रखने में मदद मिलती है. यही नही आयुर्वेद में इसे ब्रेन टॉनिक की संज्ञा भी दी जाती हैं. माना जाता है कि घी का नियमित सेवन याददाश्त को बेहतर बनाता है और तंत्रिका तंत्र से जुड़ी अन्य समस्याओं में आराम भी दिलाता है. सिर में इसकी मालिश से भी चिंता, गुस्सा, तनाव तथा बेचैनी आदि व्यावहारिक व मानसिक अवस्थाओं थोड़ी राहत मिलती है. घी में हीलिंग तत्व भी होते हैं जो घाव तथा बवासीर सहित कई समस्याओं में राहत दिलाते हैं हैं.

क्या कहते हैं पोषण विशेषज्ञ

इंदौर की आहार एवं पोषण विशेषज्ञ डॉ संगीता मालू बताती हैं कि सही मात्रा में नियमित रूप से शुद्ध देसी घी का सेवन शरीर को फायदा पहुंचाता है. वह बताती है कि प्रतिदिन दो से तीन चम्मच घी का सेवन करना हमारी सेहत के लिए अच्छा होता है. लेकिन इससे ज्यादा घी विशिष्ट परिस्थितियों में या किसी प्रकार की समस्या या रोग से ग्रस्त व्यक्तियों के शरीर पर विपरीत प्रभाव भी दिखा सकता है.

गौरतलब है कि कि देसी घी में कैल्शियम, फास्फोरस, मिनरल्स, पोटैशियम, मिल्क प्रोटीन, विटामिन ए, के, ई, डी सहित ओमेगा 3 तथा ओमेगा 9 फैटी एसिड जैसे पोषक तत्व तथा एंटीऑक्सीडेंट व एंटी इन्फ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं, जो शरीर को स्वस्थ रखने के साथ-साथ उन्हें कई प्रकार के संक्रमण से बचाने में भी मदद कर सकते हैं.

हमारे विशेषज्ञों के अनुसार देशी घी के नियंत्रित मात्रा में सेवन से कई तरह के फायदे हो सकते हैं . जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं।

  • यह प्राकृतिक रूप से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का कार्य करता है.
  • देसी घी को पाचन के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है. यह आंतों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है.
  • यह शरीर में खराब कोलेस्ट्रॉल को दूर करने में भी यह मददगार होता है, तथा ह्रदय रोग की आशंका को कम करता है.
  • नियंत्रित मात्रा में घी का सेवन करने से मोटापे में कमी आती है.
  • देसी घी के सेवन से हड्डियों के जोड़ों में चिकनाई बढ़ती है, साथ ही हड्डियों में कैल्शियम के अवशोषण की क्षमता बढ़ती हैं.
  • त्वचा और बालों को स्वस्थ व सुंदर बनाए रखने में मदद करता है.
  • मोटापे से बचाता है.

क्या कहते हैं शोध

घी के फ़ायदों को लेकर किए गए राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान के एक शोध में बताया गया था कि गाय का देसी घी शरीर में ऐसे एंजाइम बनाता है जो कैंसर को बढ़ाने वाले वायरस को निष्क्रिय करने में मददगार होते हैं. वहीं नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन की वेबसाइट पर प्रकाशित एक शोध में भी बताया गया है कि देसी घी में कार्सिनोजेनिक यानी कैंसर के असर को कम करने वाले गुण पाए जाते हैं. इसके अलावा घी में पाया जाने वाला लीनोलिक एसिड, कोलन कैंसर से रोकथाम में मदद करता है.

इस शोध में कहा गया है कि घी में पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट प्रभावों के चलते यह ना सिर्फ हानिकारक कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित रखने, मेटाबॉलिज्म को बेहतर करने, पाचन को दुरुस्त रखने, कब्ज, उल्टी और मतली जैसी समस्याओं को कम करने तथा हड्डियों को मजबूत बनाए रखने में मदद करता है.

इस शोध में यह भी बताया गया है कि घी का इस्तेमाल एक ब्रेन टॉनिक के रूप में किया जा सकता है. इसके अलावा घी में फैट सॉल्युबल विटामिन पाए जाते हैं, जो थायराइड ग्रंथि को रेगुलेट कर सकते है. जो गर्भावस्था के दौरान काफी जरूरी होता है. इसके अलावा इसमें मौजूद औषधीय गुण गर्भवती महिला तथा उसके गर्भ में पलने वाली शिशु दोनों को लाभ पहुंचाते हैं

सावधानियां

डॉ संगीता बताती हैं कि शुद्ध देसी घी का इस्तेमाल निसंदेह शरीर को काफी फायदा पहुंचाता है लेकिन बहुत जरूरी है कि इस बात का ध्यान रखा जाए कि उसका सेवन कितनी मात्रा में किया जा रहा है. विशेष रूप से वे लोग जो पहले से किसी रोग या समस्या का शिकार हैं उन्हें अपने आहार में किसी भी प्रकार के वसा की मात्रा को लेकर एक बार चिकित्सक से परामर्श अवश्य कर लेना चाहिए.